BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।

अथवा
ध्वनि-परिवर्तन की दिशाओं का सविस्तार विवेचन कीजिए।
अथवा
ध्वनि परिवर्तन की लोप दिशा का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

ध्वनि-परिवर्तन मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं, इन्हें 'ध्वनि-विकार' और 'ध्वनि विकास' के नाम से पुकारा जाता है।

१. स्वयंभू - अपने आप होने वाले ध्वनि परिवर्तन स्वयंभू होते हैं, जिनके लिए किसी विशेष अवस्था अथवा परिस्थिति की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये कहीं और कभी भी घटित हो सकते हैं अधिकांशतः तो यह भाषा के प्रवाह में ही हो जाता है।

२. परोद्भूत - किन्हीं परिस्थितियों तथा कारणों से ध्वनि में होने वाले परिवर्तन परोद्भूत कहलाते हैं अधिकांश परिवर्तन इसी के अन्तर्गत आते हैं

१. लोप

कभी-कभी बोलने में मुख सूखने के कारण अथवा शीघ्रता या स्वराघात आदि के प्रभाव से कुछ ध्वनियों का लोप हो जाता है। भाषाओं में सबसे अधिक प्रवृत्ति इसी की मिलती है। लोप तीन प्रकार का सम्भव है-

१. स्वरलोप
२. व्यंजन लोप
३. स्वर - व्यंजन लोप।

आदि, मध्य, अत्यं की दृष्टि से इनके तीन भेद होते हैं-

१. स्वर लोप जहाँ किसी शब्द के आदि, मध्य और अन्त में स्वर को लोप हो जाता है, वहाँ स्वर लोप होता है। इसके तीन भेद निम्न हैं-

(क) आदि स्वर लोप - जहाँ किसी शब्द के आरम्भ में किसी स्वर का लोप हो जाता है, आदि स्वर लोप होता है-

अनाज नाज अरघट्ट रहँट
अभान्तर भीतर उपायन बापन
अहाता हाता अगर गर

(ख) मध्य स्वर लोप - जहाँ किसी शब्द के मध्य से किसी स्वर का लोप हो जाता है, 'मध्य स्वर लोप होता है, जैसे-

गरदन गर्दन कृपया कृप्या
तरबूज तरबूज बलदेव बल्देव
खुर्जा खुर्जा हरदम हर्दम

(ग) अन्त्य स्वर लोप - जहाँ किसी शब्द के अन्त में कोई स्वर लुप्त हो जाता है, वहाँ अन्त्य स्वर लोप होता है, जैसे-

निद्रा नींद आम आम्
भगिनी बहिन राम राम्
शिक्षा सीख दाम दाम्


२. व्यंजन लोप - जहाँ किसी शब्द के आदि मध्य या अन्त में व्यंजन का लोप हो जाता है, वहाँ 'व्यंजन लोप' होता है-

(क) आदि व्यंजन लोप जहाँ शब्द के आदि (पूर्व) के व्यंजन का लोप हो जाता है, जैसे-

स्थाली थाली स्कन्ध कन्धा
स्थान थान शमशान मसान

(ख) मध्य व्यंजन लोप - जहाँ शब्द के मध्य में व्यजन का लोप हो जाता है, जैसे-

सूची सूई कार्तिक कातिक
घरद्वार घरबार कर्म काम
आसन्दी आसानी सप्त सात
कोकिल कोइन गार्भिणी गाभिन
कूर्चिका कूँची - -

(ग) अन्त्य व्यंजन लोप - जहाँ शब्द के अन्त में व्यंजन का लोप हो जाता हैं, जैसे-

कमाण्ड कमान बम्ब बम
निम्ब नीम उष्ट्र ऊँट
रात्रि रात पंक्ति पाँत

३. स्वर व्यंजन लोप - जहाँ आदि, मध्य और अन्त्य स्वर व्यंजन लोप हो जाता है।-

(क) आदि - स्वर व्यंजन लोप - इसके उदाहरण भी अधिक नहीं मिलते। दो उदाहरण हैं 'नेकटाई' से 'टाई' तथा आदित्यवार से इत्तवार या इतवार।

(ख) मध्य स्वर - व्यंजन लोप अग्रह्याण अगहन, भाण्डागार भंडार, पर्यंकग्रन्थि-पलत्थी बरुजीवी - बरई, राजकुल्य - राउर (भोजुपरी), फलाहार - फरार (ब्रज

(ग) अन्त्य स्वर  व्यंजन लोप - माता - माँ, विज्ञाप्तिका - विनती, नीलमणि - नीलम, भ्रातृजाया - भावज, मौक्तिक-मोती, कर्तरिका - कटारी, निम्बुक-नींबू जीव जी, दीपवर्तिका - दीवट, कुंचिका - कुंजी, सम्पादिक-सवा, उष्ट्र- ऊँट, आम्र आम।

समध्वनि लोप - इसमें यह होता है कि किसी शब्द में यदि एक ही ध्वनि या ध्वनि-समूह दो बार आये तो एक का लोप हो जाता है। वस्तुतः एक स्थान पर दो ध्वनियों का उच्चारण असुविधाजनक होता है अतः एक को छोड़ देते हैं। प्रायः सभी भाषाओं में इसके उदाहरण मिलते हैं। उदाहरणार्थ स्वर्गगंग्य - स्वर्गगा नाककटा - नक्टा, खरीददार - खरीददार, नाटकार - नाटकार, संवाददाता-संवादाता, मानस नंदुलारे वाजपेयी। कभी-कभी ध्वनि या अक्षर पूर्णतः एक ही न होकर उच्चारण में मिलते जुलते हों, तब भी एक का लोप हो जाता है कृष्णनगर कृषनगर। अतः इसके 'समव्यंजन- लोप' (खरीददार- खरीदार) और 'समस्वर-लोप' (सारा आकाश-साराकाश) दो उपभेद किये जा सकते हैं। मेरे विचार में संस्कृत में अ + आ = आ, ई + ई = ई, ऊ + ऊ = ऊ तत्वतः समस्वर-लोप के ही उदाहरण हैं।

२. आगम

लोप का उल्टा आगम है। इसमे कोई नयी ध्वनि आ जाती है। उच्चारण सुविधा ही इनके प्रमुख भेदों का कारण है। लोप की भाँति ही इसके भी कई भेद होते हैं-

(क) आदि स्वरागम - जब शब्द के आरम्भ में कोई स्वर आ जाता है, तो वहाँ आदि स्वरागम होता है। इसे प्रागुजन भी कहते हैं, जैसे-

स्टूल इस्टूल स्टेशन अटेशन या इस्टेशन
स्तुति अस्तुति स्त्री   इस्तिरी

(ख) मध्य स्वरागम स्वर भक्ति - संयुक्त व्यंजनों के उच्चारण में होने वाली असुविधा को दूर करने के लिए बीच में किसी स्वर के आगम को मध्य स्वरागम कहते हैं। स्वर की भक्ति (भाग- अंश) लगने के कारण इसे स्वर भक्ति और संयुक्त में व्यवधान डालने के कारण मुक्तविप्रकर्ष या विप्रकर्ष कहते हैं, जैसे-

स्टेशन सटेशन प्रचार परचार
 धर्म धरम कर्म करम
भक्त भगत प्रसाद परसाद
पंक्ति पंगत हुक्म हुकुम
इन्द्र इन्दर स्वर्ग सुवर्ग

(ग) अन्त्य स्वरागम - जब सुविधानुसार अन्त में कोई स्वर जोड़ा जाता है तो अन्त्य स्वरागम्य होता है। संस्कृत के हलन्त शब्दों को प्राकृत में अकारान्त कर देते हैं। अंग्रेजी में अन्तिम व्यंजन के बाद कोई स्वर जोड़ देते हैं-

दवा दवाई स्वप्न सपना
सन्देश सन्देसा   प्रिय प्रिया
विदा विदाई पत्र पता

अक्षरागम (स्वर-व्यंजन आगम) - जहाँ पूर्व मध्य या अन्त में किसी अक्षर का आगम होता है,. वहाँ अक्षरागम कहलाता है, इसके लिए निम्न तीन रूप हैं-

(i) आदि अक्षरागम - जहाँ किसी शब्द के पूर्व किसी अक्षर का उच्चारण प्रचलित हो जाता है वहाँ आदि अक्षरागम होता हैं, जैसे-

स्फोट विस्फोट
फजूल बेकजूल
गुञ्जा घुँघुँची

(ii) मध्य अक्षरागम - जहाँ मध्य में अक्षरागम होता है, वहाँ मध्य अक्षरागम होता है, जैसे-

आलसी आलकसी कमी कमताई
खल खरल - -

(iii) अन्त्य अक्षरागम - जहाँ अक्षर अन्त्य में जुड़ता है, वहाँ अन्त्य अक्षरागम होता है, जैसे-

वधू वधूरी आँक आँकड़ा
डफ डफली सिंदे सिंधियां
आँख आँखड़ी मुख मुखड़ा।

व्यंजनागम - जहाँ पूर्व मध्य या अन्त्य में किसी व्यजंन आगम होता है, व्यंजनागम कहलाता है। इसके निम्नलिखित तीन रूप हैं-

(i) आदि व्यंजनागम - जब किसी शब्द के पूर्व किसी व्यंजन का उच्चारण प्रचलित हो जाता है, वहाँ आदि व्यंजनागम होता है। जैसे-

ओष्ठ होठ औरंगाबाद नौरंगाबाद
अस्थि हड्डी उल्लास हुलास

(ii) मध्य व्यंजनागम - जहाँ मध्य में व्यंजन का आगम होता है, वहाँ मध्य व्यंजनागम होता है,जैसे-

सुनर सुन्दर सुनरी सुन्दरी
बानर बन्दर शाप श्राप
समन सम्मन आलस्य आलकस

(iii) अन्त्य व्यंजनागम - जहाँ व्यंजन अन्त में जुड़ता है, वहाँ अन्त्य व्यंजनागम होता है, जैसे-

भ्रू भौंह परवा परवाह
दरिया   दरियाव कल कल्ह

३. विपर्यय

इसको वर्ण-विपर्यय, स्थान- विपर्यय या स्थान परिवर्तन भी कहा जाता है। कभी-कभी शब्द में स्वर या व्यंजन असावधानी के कारण या जानबूझकर बदल जाता है। इसके निम्न रूप हैं-

(i) स्वर विपर्यय.

कुछ कछु इक्षु ऊख
अंगुली उंगली उल्का लूका

(ii) व्यंजन विपर्यय लखनऊ- नखलऊ चाकू - काचू

'जलेबी जबेली मतलब मतबल

(iii) अक्षर विपर्यय - जहाँ किसी शब्द के कई स्वर एवं व्यंजन अपना स्थान परिवर्तित करके उच्चरित होने लगते हैं, जैसे-

दाल में काला काल में दाला कोलतार तारकोल
दाल चावल चावल दाल

(iv) एकांगी विपर्यय जब एक स्वर अथवा व्यंजन अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र चला जाता है, परन्तु उसके स्थान पर कोई दूसरा स्वर या व्यंजन नहीं आता तो वह एकांगी विपर्यय कहलाता है, जैसे - बिन्दु-बूँद। यहाँ 'इ' प्लूत है और उ का दीर्घ ऊ होकर स्थान परिवर्तित हुआ है।

४. समीकरण

जहाँ दो विषम ध्वनियाँ एकत्र होकर एक ध्वनि को प्रभावित कर उसे अपने अनुसार बना लेती हैं। कुछ विद्वान् इसे 'सावर्ण्य' भी कहते हैं। इसके दो भेद हैं-

(i) पुरोगामी समीकरण - इसमें पूर्ववर्ती ध्वनि आगे की दूसरी ध्वनि को अपने सदृश बनाती है। यह स्वर और व्यंजन दोनों में पाया जाता है।

                                                                    स्वरसमीकरण                                                                                                                            व्यंजन समीकरण

जुल्म जुलुम पत्र पत्ता
 हुकम हुकुम चक्र चक्का
मुक्ति मुकुति भद्र भद्दा
पुरब पुरुष शर्करा शक्कर

(ii) पश्चगामी समीकरण - इसमें परवर्ती ध्वनि पूर्ववर्ती ध्वनि को अपने सदृश बनाती है-

                                                                    स्वर समीकरण                                                                                                                              स्वर - व्यंजन समीकरण

अंगुली उंगली कर्म काम
इक्षु उक्खु कलक्टर कलट्टर

(iii) अपूर्ण समीकरण - कभी कभी अपूर्ण समीकरण भी देखने को मिलता है, जैसे-

नागपुर नाक्पुर, डाकघर छाग्घर

५. विषमीकरण

डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार-  "जहाँ निकटवर्ती दो समान ध्वनियाँ अपना रूप छोड़कर दूसरा रूप लेती हैं, वहाँ विषमीकरण होता है। इससे कुछ विद्वान् 'अस्यवर्ण्य' भी कहते हैं। इसके भी निम्न भेद हैं-

(i) पुरोगामी विषमीकरण - जहाँ समीपवर्ती दो सम्मान ध्वनियों से पूर्ववर्ती ध्वनि जैसी की तैसी बनी रहती है किन्तु परवर्ती ध्वनि अपना रूप बदल लेती है, वहाँ पुरोगामी विषमीकरण होता है, जैसे-

स्वर विषमीकरण व्यंजन विषमीकरण
पुरुष   पुरिस काक काग
तित्तिर तीतर कंकण कंगन
भित्ति भीत पिपासा प्यासा

(ii) पश्चगामी विषमीकरण - जहाँ समीपवर्ती दो समान ध्वनियों में से परवर्ती ध्वनि जैसी की तैसी बनी रहती है, किन्तु पूर्ववर्ती ध्वनि बदल जाती है, वहाँ 'पश्चगामी विषमीकरण' होता है, जैसे-

स्वर विषमीकरण व्यंजन विषमीकरण
नूपुर   नेटर लांगन नांगल
कुकुल मउल नवनीत लवनी
मुकुट मउर दरिद्र दलिद्दर

६. सन्धि

स्वरों के स्वरों से व्यंजनों के व्यंजनों से तथा स्वरों के व्यंजनों से होने वाले ध्वनि परिवर्तन सन्धि कहलाते हैं। सन्धि से होने वाले परिवर्तन का भी ऐसा रूप लें लेते हैं कि उन्हें समझना कठिन होता है-
सपत्नी - सवतं - सउत - सौत्र - - सौत        नयन - नइन - नैन
शत - सत - सव- - सउ - सौ                        वचन - बइन - बैन।

७. ऊष्मीकरण

ध्वनियों का ऊष्म ध्वनियों में परिवर्तन ऊष्मीकरण कहलाता है। इसी आधार पर भारोपीय भाषाओं के केन्तुम् और सतम् दो वर्ग बनाये गये हैं।

८. स्वतः अनुनासिकता

जहाँ कुछ शब्दों के मूलरूप में अनुनासिकता न होने पर भी उनके विकसित रूपों में अपने आप अनुनासिकता आती है, जैसे-

सर्प साँप उष्ट्र ऊँट
भ्रू भौं कूप कुआँ
सत्य साँच अक्षु आँसू

इसे कुछ विद्वान् अकारण तो कुछ सकारण मानते हैं। डॉ. तिवारी के शब्दों में, “आकरण कुछ भी नहीं होता। वस्तुतः अनुनासिक ध्वनि का उच्चारण अधिक सहज एवं सरल होने के कारण ही अनजाने में कहीं-कहीं ऐसा हो गया है। पुनरापि किसी निश्चित कारण का उल्लेख नहीं किया जा सकता है।'

६. मात्रा भेद

क्षतिपूर्ति तथा स्वराघात आदि के परिणामस्वरूप होने वाले ध्वनि परिवर्तन मात्रा भेद के उदाहरण हैं। इसके दो रूप पाये जाते हैं-

(i) ह्रस्वीकरण - दीर्घ में ह्रस्व होना-

शून्य सूत्र आम्भीर अहीर
आषाढ़ असाढ़ धूम्र धुआँ

(ii) दीर्घीकरण ह्रस्व से दीर्घ होना-

जिहा जीभ दुग्ध दूध
शिक्ष सीख लज्जा लाज

१०. घोषीकरण

अघोष ध्वनियों का घोष ध्वनियों में परिवर्तन हो जाना घोषीकरण कहलाता है-

शाक साग काक काग
शती सदी नकद नगद
कंकन कंगन एकादश ग्यारह

११. अघोषीकरण

इसमें घोष ध्वनियों का अघोष हो जाता है-

मदद मदत वाग्पत्ति वाक्पति।

१२. महाप्राणीकरण

जहाँ अल्पप्राण ध्वनियाँ महाप्राण बन जाती हैं, जैसे-

वाष्प भाप गृह घर
शुष्क सूखा हस्त हाथ
धृष्ट ढीट वृश्चिक बिच्छू

१३. अल्प प्राणी करण

जहाँ महाप्राण ध्वनियाँ अल्पप्राण हो जाती हैं, जैसे-

वसिष्ठ वसिष्ट भूख भूक
भगिनि बहिन भीख भीक

१४. अवश्रुति या अक्षरावस्थान

डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना - के शब्दों में "जहाँ शब्दों के अन्तर्गत व्यंजनों के यथावत् रहते हुए केवल उनके स्वरों में आन्तरिक परिवर्तन पाया जाता है, वहाँ अवश्रुति या अक्षरावस्थान होता है।"

इस अवश्रुति के कारण केवल ध्वनि परिवर्तन नहीं होता, अपितु रूप परिवर्तन एवं अर्थ परिवर्तन भी हो जाता है, जैसे-

हिमार (गधा) हमीर (गधे)
किताब (पुस्तक) कुतुब (पुस्तकें)
  कत्ल (मरण) कातिल (मारने वाला)
फुट (पैर या नाप) फीट (पैरों या फीटों)

१५ अभिश्रुति या अक्षरावस्थान

मनि - मइनि - मैन

१६. अपनिहित समस्वरागम

जहाँ किसी स्वर आरम्भ या मध्य में किसी ऐसे स्वर का आगम हो, जो पहले से ही उस शब्द में विद्यमान हो, वहाँ 'अपनिहित' नामक ध्वनि-परिवर्तन होता है। यथा-

भवति बवइति तरुण तउरून

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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